एक उत्साही मानव की कहानी...
ऊबड़ खाबड़ जमीन, पानी की कमी, बिजली का संकट, सड़क की समस्या, जानकारी की कमी, शिक्षित न होना। यह कुछ ऐसी परेशानियां हैं जिसे कि एक आम किसान महसूस करता है। और रोना रोता रहता है। और अंततः वह शहर की तरफ भागने लगता है। लेकिन जबलपुर के घाट पिपरिया के ही गागरी टोला के रहने वाले भोलाराम केवट की कहानी इसके ठीक उलट है।

बात लगभग 15 साल पहले की है। भोला राम केवट ग्यारहवीं तक पढ़े हुए हैं। और सीधे साधारण व जिम्मेदार नागरिक की तरह से जीवन व्यतीत कर रहे है। करीब 15 साल पहले दूसरे के यहां नौकरी करते हुए इनके मन में एक बात आयी कि क्यों न खेती किसानी में परंपरागत विधि को छोड़कर वैज्ञानिक विधि का अनुसरण किया जाए व एक आजमाइश की जाए। फिर अपने सपने को साकार करने के लिए इन्होने जबल
पुर में नर्मदा के किनारे स्थित अपनी जमीन बेच दी और। मालवा बंुदेलखण्ड व महाकोशल में फैले इस क्षेत्र में पथरीली व काली मिट्टी की अधिकता है। काली मिट्टी वैसे तो उपजाऊ होती है। लेकिन जागरूकता के अभाव में किसान खेती का अधिक से अधिक लाभ नही ले पाते हैं। पूरे क्षेत्र में उपरोक्त सारी समस्यायें व्याप्त है। लेकिन भोला राम ने हार नही मानी और इसी क्षेत्र में 10 एकड़ जमीन ली।चूंकि आर्थिक स्थिति कमजोर थी तो सारे काम खुद ही करने पड़ रहे है। परिवार में पांच लोग है। पूरे खेत में भोला राम ने परंपरागत खेती की जगह हार्टीकल्चर को बढ़ावा दिया और पूरी तन्मयता से जुट गए। खेतो की जुताई, बुआई से लेकर बाजार तक उपज को पहुंचाना आदि सारी जिम्मेदार खुद के कंधों पर ले ली।
राह में आने वाली चुनौतियां...
ऊबड़ खाबड़ जमीन, पत्थरों की अधिकता, पानी की कमी और बिजली की समस्या सिर उठाये खड़ी रहती है। मध्य प्रदेश सरकार या कृषि विभाग से कोई सहायता नही मिल रही है। अपने बलबूते पूरा कार्य करना पड़ रहा है। पूरी तरह से बिजली द्वारा संचालित पानी की व्यवस्था पर निर्भर है। पर बिजली न आने की वजह से पानी की कमी बनी रहती है। जिससे कि फसले सूख जाती है। लेकिन उसका मुआवजा नही मिलता है।
हार्टीकल्चर को बढ़ावा...

भोला राम ने अपने खेतों में 2014 से इसकी शुरुआत की। गेंदे के फूल, बैंगन, लौकी, गोभी, मटर, और इसी तरह के कई फूल व सब्जियों को बढ़ावा दे रहे हैं। प्रति छमाही सब कुछ मिला कर लगभग एक से डेढ़ लाख तक की बचत हो जाती है। अपने अनुभव बताते हुए भोलाराम कहते हैं कि हम शहरों में नौकरी व काम धंधे के चक्कर में घूमते रहते है। पर हमें कोई विशेष फायदा नही होता। लेकिन वैज्ञानिक विधि द्वारा की जाने वाली खेती ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। और अब गांव के दूसरे किसान भी उनका अनुसरण करने लगे हैं। कई बार मुझे इसमें घाटा भी लगा है। लेकिन अपना उत्साह नही खोया है। और लगातार अपने काम में लगे हुए है।
गांव छोड़कर शहर भागने वाले आज के युवाओं को प्रोत्साहित करते हुए वे बताते हैं कि जितना हम शहरों में जाकर कमाते हैं उससे कहीं ज्यादा आज खेती से कमाया जा सकता है। जरूरत है बस एक ऐसे कदम की जो कि हमें आगे का रास्ता दिखा सके और हमें बस उस पर अमल करने की जरूरत होती है।