एक और जूताकांड होते- होते बचा...!
माननीय आश्वस्त हैं कि इस देश में चुनाव ऐसा एंटीवायरस है, जिसके आगे सारे वायरस नतमस्तक हो चुके हैं।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यूपी के महराजगंज में विधायक सांसद के बीच हुआ जूता कांड, हमारी स्मृतियों में अब भी मौजूद है। जब हल्की सी तकरार के बाद त्रिपाठी के लौंडे ने धड़ाधड़ एक विधायक जी को सूत दिया था। हालांकि एक ही पार्टी का होने के चलते तात्कालिक तौर पर तो मामला सुलझा लिया गया था, लेकिन चुनाव में त्रिपाठी के लौंडे को टिकट नहीं दिया गया। शायद संगठन भी समझ गया था कि जूता तक ठीक है, याद कुछ और निकल जाता तो...।
खैर उस जूताकांड के बाद प्रदेश में सभी माननीयों और साहबों को अप्रत्यक्षतः कहा गया कि अपनी खोल से बाहर निकलने का प्रयास न करें, वरना मार्गदर्शक मंडल में भेजने में संगठन कोताही नहीं बरतेगा। बावजूद इसके एक आध मौके आए जब माननीयों ने आरोप लगाया कि जिलों में साहबों ने उनकी सुताई कर दी। हाल ही में ऐसा ही आरोप प्रतापगढ़ के रानीगंज से विधायक ने भी लगाया। हालांकि उनकी रूदाली में दुःख कम ड्रामा ज्यादा दिख रहा था, इसलिए ज्यादा मीडिया हाइप नहीं मिल पाई। वहीं सरकार और शासन के साथ संगठन ने भी जांच की बात कहते हुए मामले से पल्ला झड़ना उचित समझा।
अब ऐसे ही एक और जूता कांड की पुनरावृत्ति होते होते बची। ताजा मामला लखीमपुर खीरी का है, जहां वर्तमान विधायक और निवर्तमान ब्लॉक प्रमुख के बीच क्षेत्र पंचायत प्रत्याशियों के पर्चे वापसी को लेकर टकराव हो गया। धनबल के प्रयोग से पहले बाहुबल का प्रयोग किया गया। खबरों के मुताबिक, विधायक जी अपनी बहुरिया को निर्विरोध ब्लॉक प्रमुख बनवाना चाहते हैं, इसलिए उसके वार्ड के अन्य चार लोग अपना नामांकन वापस लेने ब्लॉक परिसर पहुंच गए, जहां निवर्तमान ब्लॉक प्रमुख पहले से मौजूद थे। ब्लॉक प्रमुख पर्चा वापसी के खिलाफ थे और विधायक किसी भी कीमत पर पर्चा वापस कराने आए थे। क्षेत्रीय प्रकृति स्वरूप खुलेआम धक्का-मुक्की और गाली-गलौज होने लगा। हाथापाई भी हुई। इस दौरान असलहे भी लहराए गए। हालांकि जिले के डीएम एसपी के पहुंचने के बाद मामला शांत हुआ। कहा जा रहा है कि प्रदेश के साहबान जूता कांड के बाद से ही सक्रिय मोड में रहते हैं, क्या पता, कब, कौन अपने जूते का ब्रांड आजमा ले और ऐसी भनक लगते ही, मामले को शांत कंट्रोल में लेते हैं।
अब चूंकि पंचायत चुनाव चल रहे हैं, आने वाले आठ दस माह बाद विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में हर एक माननीय चाहते हैं कि प्रधान, जिला पंचायत सदस्य यहां तक क्षेत्र पंचायत सदस्य तक उसके अपने आदमी बनें। क्योंकि यही सदस्य बाद में जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख का चयन करेंगे, जो जिले के बजट के प्रमुख या यूं कहें कुबेर बनेंगे। अब यदि अपने आदमी, रिश्तेदारों को यह पद मिलते हैं, तो माननीय को अपने काम करवाने, बजट खर्च कराने और अपने छर्रों को कमाई करवाने में आसानी रहेगी। छोटे मोटे ठेके पट्टे आराम से मिल जाते हैं। वहीं प्रधान, प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य के समर्थक माननीय की रैलियों में जिंदाबाद के नारे लगाते हैं। इससे न सिर्फ हाईकमान को संदेश जाता है बल्कि स्थानीय स्तर पर माननीय की स्थिति मजबूत हो जाती है, क्षेत्र भले बदहाल पड़ा रहे।
इस तरह के अनेक प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष लाभों को ध्यान में रखते हुए, अनेक माननीय अपने छुटभैये कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में बढ़चढ़ कर अपनी भागीदारी दे रहे हैं। उम्मीदवार कैसा भी हो माननीय के धनबल, बाहुबल में पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता... यहां बस एक चीज की जरूरत है और वह है लॉयल्टी, जो माननीय अपने समर्थित उम्मीदवार से चाहते हैं। खैर विधानसभा चुनाव को तकरीबन दस माह बचे हैं, देखते जाइए, कई माननीय समुद्र मंथन करने लगेंगे। वादों, इरादों को बढ़ा-चढ़ाकर गिनाने वाले माननीय अपने पांच साल का जमीनी हिसाब तो कभी नहीं बताएंगे, हां कागजी विकास के बारे में ऐसा बांग देंगे कि लगेगा विकास न इनके पहले गतिशील हुआ है और न इनके बाद होगा।
हालांकि वादों, इरादों की दुकानें पंचायत चुनाव में ही सज चुकी हैं, जो विधानसभा चुनावों तक बरकरार रहने वाली हैं। अभी कई ऐसे भी निकलकर आयेंगे, जिनकी आत्मा में एक क्रांति होगी और चार साल से दबी आवाज वह स्पष्ट सुन लेंगे। माननीन के विकास कार्यों के इतर महामारी बन चुका कोरोना दस गुनी रफ्तार से भाग रहा है। लेकिन जैसा कि वर्तमान में देख रहे हैं, माननीन ने खुद और समर्थकों को वोटरों से नमस्ते, रामराम, पायलागी, प्रणाम... की प्रैक्टिस में लगा दिया है। क्योंकि माननीय आश्वस्त हैं कि इस देश में चुनाव ऐसा एंटीवायरस है, जिसके आगे सारे वायरस नतमस्तक हो चुके हैं।