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पूस की ठंड में गर्मी का इंतजाम

पूस की ठंड में गर्मी का इंतजाम 

दिसम्बर का महीना, साल का अखिरी दिन, उत्तर प्रदेश इन दिनों भीषण सर्दी और घनघोर कोहरे से जूझ रहा है। बीच में अमिर खान अभिनीत एक फिल्म आयी दंगल लेकिन वह उत्तर प्रदेश में कोई खास उबाल नही ला पाई। उधर राजनीति भी कोई खास गर्मी नही दे रही थी। मोदी रैली के बहाने योजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास करते रहे और अखिलेश यादव अपने पसंदीदा मुख्यमंत्री आवास से, लेकिन नतीजा नगण्य रहा। यूपी बोर्ड ने थोड़ी राहत देने की कोशिश की कि शायद दसवीं व बारहवी के बच्चे रजाई से निकल कर स्कूल की राह पकड़ें लेकिन उनके इस कोशिश पर पानी चुनाव आयोग ने फेर दिया। रही सही कसर मीडिया ने पूरी की योजनाओं और कामों की पोल खोलकर लेकिन फिर भी इस जाड़े में घरों में दुबके बैठे नेता बाहर निकलने को मजबूर न हुए। जो लोग निकलते भी थे तो वे राजनीति की जगह पर नोटबंदी के चक्कर में बैंकों की लाइन में उलझ जाते थे। फिर अचानक से उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने का सपना दिखाने वाली समाजवादी पार्टी ने लोगों के अंदर थोड़ी गर्मी भरने के लिए अपने प्रत्यासियों की लिस्ट जारी की। 

खैर पेट्रोल दो महीने पहले ही छिड़का जा चुका था बारूद भी जमा हो चुका था धमाका तो होना ही था। यह सबको पता था लेकिन यह किस तरफ होगा इस पर कुछ संदेह था। लेकिन मीडिया का संदेह सही साबित हुआ मुलायम सिंह द्वारा जलाई गयी चिंगारी से जो धमाका हुआ उससे समाजवादी पार्टी ही नही बल्कि पूरे प्रदेश की राजनीति में उबाल आ गया। अपने प्रिय बेट और वर्तमान मुख्यमंत्री को पार्टी से निकालना कोई आसान काम नही था। लेकिन धोबी पाट में निपुण मुलायम सिंह यादव के लिए यह कोई कठोर भी नही था। खैर जो भी हुआ उससे पूरे प्रदेश में गर्मी आ गयी समर्थक भीषण कोहरे और ठंड में सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर राजधानी लखनऊ पहुंचे। लेकिन जैसा कि पता है कि मुलायम को लोगों की औकात दिखाना भी आता है और देखना भी आता है। इसके उदाहरण अमर सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा, आजम खां जैसे वफादार लोग हैं। यह गुण वैसे सब के पास नही होता है। किसी किसी के पास होता है।

 इससे पहले भी विधानसभा चुनाव व लोकसभा चुनाव में मुलायम अखिलेश यादव व पार्टी की औकात देख चुके जब अखिलेश के नेतृत्व में लड़ा गया विधानसभा चुनाव तो सपा जीत गयी। लेकिन पार्टी के नेतृत्व में लड़ा गया लोकसभा चुनाव बुरी तरह से हार गयी। रही सही कसर कल निष्कासन के बाद लखनऊ में उमड़े अखिलेश समर्थकों ने पूरा कर दिया। लेकिन फिर भी मीडिया का दिमाग अलग ही चल रहा था। वह अब भी अंदेशे में था कि क्या होगा। लेकिन मुलायम सिंह याद जेठ की दुपहरी की तरह तपने के बाद पूस की ऐसी रात जैसे निढाल पड़े कि बेटा उनसे ज्यादा संस्कारवान नजर आने लगा। अब मुलायम जी करते भी क्या ?
और फिर दोपहर तक वही हुआ जिसका अंदेशा राजनीति की समझ न रखने वाले हम जैसे लोग करते है। मतलब है कि सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नही कहते भाई। अब सारे एक हो गए। दिन के बारह बज चुके थे सबकी समझ में आ गया कि अलग-अलग राह से मंजिल की तरफ न बढ़ो। चकरोट बनाने से ज्यादा बेहतर है कि हाइवे बनाओं। इसके साथ ही मुलायम के बारे में कहावत भी पूरी हो गयी। मन से हैं मुलायम इरादे लोहा हैं। साकार हो गयी, इरादा तो पुत्र को उसकी औकात दिखाना था लेकिन मन के आगे हार गए ? 



अभी तो बस बुलबुला उठा है नेताजी
तूफान तो चुनाव के बाद आयेगा
उसका सामना करने के लिए पूरे समाजवादी परिवार को तैयार रहना चाहिए
वैसे नौटंकी बहुत अच्छी करते हैं सैफई वाले
पता नही नौटंकी है या सफेड़ा(यादवों के बीच प्रसिद्ध नृत्य)
खैर समाजवाद में उतार चढ़ाव तो आते रहते हैं, अभी कुछ कहा नही जा सकता है। कुछ भी हो सकता है।
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