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विकलांग आश्रम का अनोखा दृष्य...

विकलांग आश्रम का अनोखा दृष्य...

आज हम कुछ पहले उठे सबसे पहले हम उप जोन प्रभारी व शांतिकुंज प्रतिनिधि श्री गजेन्द्र मिश्र जी से मिले। प्रोत्साहन को बढ़ावा देने वाली बातें बताई उन्होने। साथ ही कहीं पर भी आवश्यकता पड़ने पर सहयोग देने का वादा भी किया। इसके बाद हम अपने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए निकल लिए। 

बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने वाला चित्र

सबसे पहले हमें गायत्री परिवार के एक समर्पित कार्यकर्ता श्री प्रकाश मुरझानी जी से मिलने का मौका मिला। मुरझानी जी जबलपुर आयुध निर्माण कारखाने में कार्यरत थे। परंतु समाजसेवा के जज्बे के वजह से उन्होने 2015 में समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया और अब पूरी तरह से गायत्री परिवार के काम कर रहे हैं। एक शानदार व्यक्तित्व हैं मुरझानी जी। वे हमें शासकीय कन्या उच्चतर मा. वि. ब्यौहारबाग, जबलपुर ले गए जहां हमें छात्राओं को संबोधित करना था। 
भारत के भविष्य की एक अलग ही तस्वीर दिख रही थी यहां पर। आधिकतर बच्चियां जो कि अभी मुस्किल से 12 से 15 साल की थी, लेकिन सब का एक ही लक्ष्य है कि समाज में अच्छा इंसान बनना और देश की उन्नति व विकास में सहायक की भूमिका निभाना। जिस तरह से हमारे समाज मे आज लड़कियों का निम्नतम माना जाता है भारत ही कुछ जगहों से बालिका वधू और कन्या भू्रण हत्या जैसी खबरे आ रही हैं उस माहौल में इन छोटी छोटी बच्चियों के मुख से देश के प्रति ऐसी समर्पण की बातें सुनकर काफी सुखद अहसास हुआ। विद्यालय के प्राचार्य श्री एन के चैकसे जी भी एक शानदार व्यक्ति हैं। और पूरी तरह से बालिकाओं के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयासरत रहते हैं।

शहीद को सम्मान से अभिभूत करता विद्यालय

एक तरीके से देखा जाए तो सृजन सैनिक भी एक तरह की सैनिकों जैसी लड़ाई लड़तेे हैं सृजन सैनिकों और देश के सैनिकों में अंतर इतना है कि एक सीमा पर दुश्मनों से लड़ता है जबकि दूसरा समाज में रहकर बुरे विचारों से लड़ता है। और अच्छे विचारों को फैलाता हैै। अगले पड़ाव पर हम थे शहीद विक्रम उ.मा.वि. शंकर नगर करमेता जबलपुर में स्कूल में लगभग 300 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। लेकिन हमारे जागरूकता कार्यक्रम के प्रति जिस तरह की सक्रियता बच्चों ने दिखाई उसके उलट अध्यापकों में उसका अभाव दिखा। कहते हैं कि ताली कभी एक हाथ से नही बजती है बात सच भी है कि जब तक अध्यापक और छात्र साथ मिलकर कार्य नही करते हैं तब तक कार्य की सफलता पर संदेह रहता है। इसलिए ऐसे स्कूलों में इस बात की आवश्यकता जान पड़ी कि व्यक्तित्व परिष्कार व देशप्रेम की बातें बच्चों को बताने के अलावा शिक्षकों को भी बतानी चाहिए और पूरा प्रशिक्षण देना चाहिए। ताकि वे सक्रिय भूमिका निभा सकें। और अध्यापक हैं युग निर्माता छात्र राष्ट्र के भाग्य विधाता जैसे कथन की प्रासंगिकता सिद्ध हो सके। उसे प्रासंगिक बनाया जा सके।

समाज में अनूठी मिशाल...

अब मुरझानी जी हमें एक ऐसी जगह ले गए जो कि मुझे अपने आप में ही अनूठी लगी। दरअसल हम अब थे आंचल विकलांग पुनर्वास केंद्र, घड़ी चैक, विजय नगर जबलपुर। अक्सर आपने देखा होगा कि आदमी पूरी उम्र अपनी और अपनों की सेवा में लगा देता है। फिर उसे कुछ हासिल नही होता और कई बार तो ऐसा होता है कि अपने ही उसे अनाथों की तरह छोड़ देते हैं। लेकिन वहीं इस चराचर जगत में कुछ मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो कि इस संसार के सभी रीति, नीति, धर्म, कर्म, व्रत, व बंधनों का पालन करते हैं, निर्वाह करते हैं और उसी के साथ समाजोन्मुखी कार्य भी करते हैं तो आंचल विकलांग पुनर्वास केन्द्र में हम ऐसी ही एक शख्सियत से मिले जो कि विकलांग बच्चों के जीवन में खुशियां लाने के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। वह व्यक्ति हैं श्री राजेन्द्र नेमा जी। नेमा जी समाज के ऐसे विकलांग बच्चों को जिनकों कि सुधारा जा सकता है। उन्हे लाते हैं। अपने ही घर के भूतल को उन्होने इस केन्द्र के नाम पर दान कर दिया है रखते हैं और उनके अन्दर कुछ कर गुजरने की क्षमता का साहस जगाते हैं। छोटे-छोटे बच्चों को वे अपने खर्चे पर प्रशिक्षित करते हैं और जो कोई कुछ अनुदान दे दे उसी से काम चलाते हैं। उन्हे देखकर लगता है कि आज समाज को ऐसे ही भामाशाहों की जरूरत है जो कि आगे आए और उपेक्षित लोगों को समाज में बराबरी करने के लिए प्रोत्साहित करें और सम्मान दिलाएं।

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