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वाद विवाद व संवाद में फंसे प्रदेष की कहानी।


सैफई वालों की पारिवारिक नौटंकी में आपका स्वागत है...

जैसा कि आपको पता होगा कि दंगल (चुनाव पूर्व) में वरिष्ठ पहलवान(मुलायम सिंह यादव) को पटखनी दी जा चुकी है।
साथ ही साथ उनके सम्राट(एक समय प्रधानमंत्री) बनने के सपने को चूर किया जा चुका है। वो अब जन संवेदना बटोरने में लगे हुए हैं।
बच्चा पहलवान (अखिलेष यादव) रातों रात बड़ा हो चुका है।(इस तरह का विकास यूपी का होता तो सच में अब तक उत्तम प्रदेष बन गया होता)। उधर साहबजादे (राहुल गांधी) की बहन (प्रियंका वाड्रा) रिष्ते में अपनी भौजाई (डिंपल यादव) से चर्चा परिचर्चा में व्यस्त है। सास(सोनिया और साधना गुप्ता) को अभी भी दंगल की स्टोरी समझ में नही आ रही है।
एक तरफ जहां सारी पार्टियां(बसपा भाजपा) अपने पहलवान घोषित कर रही है। वहीं दंगल में अभी बाप बेटे के बीच लड़ाई ही चल रही है। उधर दंगल के आयोजनकर्ताओं (चुनाव आयोग) ने भी एक झटका दिया। और तर्कसंगत तरीके से वरिष्ठ पहलवान के अखाड़े (पार्टी चुनाव चिन्ह) की जिम्मेदारी छोटे पहलवान को ही सौंप दी।
उधर कहानीकार (प्रषांत किषोर) कहानी को अब ज्यादा लंबा नही खींचना चाहते लेकिन वो आष्चर्य से डूबे जा रहे हैं कि जो उन्होने पूरे भारत व बिहार (लोस, विस चुनाव) के लिए किया और उसका रिजल्ट आया। आखिरकार उत्तरप्रदेष में वैसा क्यूं नही हो रहा है। (नदी से निकल कर समुद्र में आने वाली हर मछली यह सोंचती है)।
उनको यह सोंच खाये जा रही है कि क्या वाकई में इस बार उत्तर प्रदेष उत्तर देने वाला है।
वैसे परीक्षा में जिस छात्र को सबकुछ आता है वह चुपचाप बैठा रहता है।
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