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भारत निर्माण के ईंट पका रही सिंधु ताई...



भारत निर्माण के ईंट पका रही सिंधु ताई...

उम्र 85 साल लेकिन जज्बा एक 25 साल के नौजवान जैसा। मैं बात कर रहा हूं जबलपुर में रहने वाली सिंधु ताई की। उम्र के जिस पड़ाव में अधिकतर वृद्धजन खाट पर बैठकर आराम करते हैं। या फिर रात दिन अस्पतालों के चक्कर काटते हैं, उस उम्र में सिंधु ताई भारत के समग्र निर्माण में भूमिका निभाने वाली भविष्य की पीढ़ी की नींव तैयार कर रही हैं। पेषे से रिटायर्ड प्रवक्ता ताई जबलपुर गायत्री षक्तिपीठ के सामने भारतीय श्री विद्या निकेतन नामक संस्था के सहयोग से एक सरस्वती षिषु मंदिर का संचालन कर रही हैं। और झुग्गी झोपड़ियों के गरीब व आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चयों के उत्थान के लिए लगातार प्रयासरत हैं।

सिंधु ताई...

1932 में जन्मी सिंधु ताई का बचपन गरीबी की हालात में बीता। गरीबी की मार झेलते हुए मन में संकल्प लिया कि गरीबी को दूर करने का स्थायी उपाय जरूर ढूंढा जाय। जिस उम्र में हर लड़की की तमन्ना होती है कि उसकी शादी होगी। अपना घर होगा, बच्चे होंगे। उसी उम्र में उन्होने शादी न करने का कठिन फैसला किया। और समाजकार्य में अपना जीवन लगाने का संकल्प लिया। गायत्री तपोभूमि मथुरा में वे कुछ दिन पंडित श्रीराम षर्मा आचार्य के सानिध्य में रहीं। उन्ही की प्रेरणा लेकर वे राष्ट्रीय सेविका समिति से जुड़ी और महिलाओं के सशक्तिकरण व जागरूकता के क्षेत्र में कार्य करना प्रारंभ किया। 25 साल की उम्र से वे रोज योग व प्राणायाम करती आ रही हैं। जिसका परिणाम है कि वे इस उम्र में भी किसी 25 साल के युवा जैसे सक्रिय रहती हैं।

षुरूआत...

आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए ताई ने जबलपुर के ही एक कालेज में नौकरी करनी प्रारंभ किया। बाद में सहायक प्रवक्ता तक की यात्रा तय की। उसके बाद लोगों केे और अपने द्वारा पढ़ाए गए बच्चों के सहयोग से स्कूल की स्थापना की और फिर लगी भारत निर्माण के संकल्प को साकार करने में। पूरे स्कूल का खर्च दान से ही चल रहा है।

उद्देष्य के साथ-साथ विचारों को महत्व...

ताई कहती हैं कि आज स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने सालों बाद भी हम सर्वांगपूर्ण समृद्ध व सषक्त भारत का निर्माण नही कर सके है। हम आज भी ऐसे युवा नही तैयार कर पा रहे हैं जो कि देष के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर सकें। आदर्ष भारत निर्माण के लिए षालाओं का निर्माण करना होगा जो कि मसीन नही बल्कि इंसान का निर्माण कर सकें। हर शाला का परीक्षा में परिणाम का लक्ष्य 100 प्रतिषत होना चाहिए और हर बच्चे का परिणाम 60 प्रतिषत होना चाहिए। तभी हम भारत निर्माण की अपनी योजना में सफल हो पायेंगे। इसके लिए छात्रों को षुरुआत से ही व्यक्तित्व निर्माण की ओर प्रेरित करना होगा। और जरूरी है कि बच्चों की नींव मजबूत करने के साथ ही उनके अभिभावकों की चिटख चुकी दीवारों को फिर से सही किया जाये। उनके अन्दर सषक्त विचारों व आदर्ष व्यवहारों का समन्वय किया जाए। बच्चों के सामने और आस पास ऐसा वातावरण बनाया जाए जिससे कि उनके अन्दर राष्ट्रप्रेम की भावना पूरे उफान पर रहे। वे देष के हित अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए हर पल तैयार रहें।

लक्ष्य निर्धारित षिक्षा समाज की आवष्यकता...

ताई कहती हैं कि लक्ष्य निर्धारित षिक्षा आज समाज की एक अहम आवष्यकता बन चुकी है। जरूरी है कि बच्चों के अन्दर यह भाव भी जगाया जाए कि समाज के प्रति भी उनकी जिम्मेदारी है। षिक्षा की उन्नति के लिए छात्रों के साथ-साथ षिक्षक भी महत्वपूर्ण है। दोनों के सहयोग से ही सफलता मिल सकती है। एक सफल षिक्षक में लगन, उत्साह, ज्ञान, कल्पना, कर्तव्यनिष्ठा, इच्छाषक्ति, व सकारात्मकता का गुण होना चाहिए। इसके साथ ही स्कूलों के प्रधानाचार्य केा भी इन सभी गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए। प्रधानाचार्य के पास एक के बाद एक उन्नतिषील योजनायें होना चाहिए जिससे कि विकास की सही दिषा धारा को अपनाया जा सके। देष का भविष्य षिक्षकों व छात्रों के हाथ में होता है। अतः इसे खुला नही छोड़ना चाहिए। समय समय पर युवा षक्ति की लगाम कसनी चाहिए नही तो आने वाली पीढ़ी विवेकानन्द, भगतसिंह, आजाद को भूलकर केवल कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल, ओवैसी, अनिर्बन जैसों को याद रखेगी। 
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