प्रेम की अधूरी दास्तान में दर्शन की गंभीर रूपरेेखा
पुस्तक समीक्षा : प्रेम की अधूरी दास्तान में दर्शन की गंभीर रूपरेेखा
पुस्तक नाम - गुनाहों का देवता
लेखक - धर्मवीर भारती
प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली।
पृष्ठ - 258
प्रथम प्रकाशन - 1949
55वां प्रकाशन - 2009
मूल्य - 160 रूपये
समीक्षा

उपन्यास के शब्द कि ‘‘जब भावना और सौंदर्य के उपासक को बुद्धि और वास्तविकता की ठेस लगती है, तब वह सहसा कटुता और व्यंग से उबल उठता है’’ में पूरी तरह आज वाली सच्चाई उभर कर सामने आती है। आधुनिकतावादी इस युग में भी कुछ ऐसे होते हैं जिनके प्रेम में शारीरिक आकर्षण से मतलब नही होता वे तो बस अपने प्रेम को खुश देखना चाहते हैं। और उसकी खुशी के लिए अपना सबकुछ त्यागने को तैयार हो जाते हैं। मनुष्य का एक स्वभाव होता है। जब वह दूसरे पर दया करता है तो वह चाहता है कि याचक पूरी तरह विनम्र होकर उसे स्वीकार करे। अगर याचक दान लेने से कहीं भी स्वाभिमान दिखाता है तो आदमी अपनी दानवृत्ति और दयाभाव भूलकर नृशंसता से उसके स्वाभिमान को कुचलने में व्यस्त हो जाता है। वर्तमान के प्रेमियों पर यह लाइने एक दम सही बैठती हैं जो सुबह प्रेम करते हैं, दिन भर उसका मनन करते हैं, शाम को ब्रेकअप होता है, उसके गम में रात शराब के ठेकों पर बीतती है और अगली सुबह फिर वही पुराना खेल शुरू करने का प्रयास करते हैं

वर्तमान समय में चल रहे प्रेम संबंधांें को आईना दिखा रहा है धर्मवीर भारती द्वारा रचित यह अद्भुत किरदार। आधुनिकतावादी इस युग में प्रेम संबंधों में आकर्षण के रस से भरपूर खीरे-ककड़ी के भाव बिकते और फलते फूलते रिश्तों को एक नई राह दिखाने का सफल प्रयास।
घर भर में अल्हड़ पुरवाई की तरह तोड फोड़ मचाने वाली सुधा, चंदर की आंख के एक इशारे पर सुबह की तरह शांत हो जाती थी। कब और क्यूं उसने चंदर के इशारों का यह मौन अनुशासन स्वीकार कर लिया उसे खुद पता नही चला। दोनों का एक दूसरे के प्रति अधिकार इतना स्वाभाविक था जैसे शरद की पवित्रता या सुबह की रोशनी। और चंदर ने न चाहते हुए भी अपनी प्राणप्रिये सुधा को प्रेम के उस गहरे झंझावात में ढकेल दिया जहां कि वह कभी जाना नही चाहती थी।
सुधा तो चुपचाप दुखी मन से ही सही उस राह पर चल पड़ी लेकिन चंदर का बलिदान क्या सच में उसे देवता बना पाया। दिल से किसी को प्यार करने वालों के लिए यह एक गहरा प्रश्न है। जिसका उत्तर आधुनिकता वादी इस युग के प्रेमियों को शायद ही पता हो।
उपन्यास पढ़ते समय मन में आज के समय व धर्मवीर भारती जी के कृतित्व के समय का मूल्यांकन करना बहुत मुश्किल हो जाता है। क्यूंकि जो बातें और शब्द उन्होने यहां पर उपयोग किये है। वे आज के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही कम जगह लागू हो पाते हैं। जिंदगी के उतार चढ़ाव को बड़ी खूबसूरती के साथ दर्शाया गया है। साथ ही साथ त्याग, तपस्या, बलिदान और मनोरंजन की पूरी दास्तान इस अंदाज में लिखी गयी है कि पढ़ने के बाद आप भावविभोर हुए बिना नही रह सकेंगे।