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योगीराज: अफवाह, मुद्दे और चुनौतिया

योगीराज: अफवाह, मुद्दे और चुनौतियां

मुद्दे

अगर बुनियादी मुद्दो की बात करें तो सबसे पहले यूपी की शिक्षा व्यवस्था की बात आती है। यूपी में मुलायम सिंह यादव के शासनकाल में शिक्षामित्रों की व्यवस्था की गई इस बात को सोंचकर कि इससे व्यवस्था सुधरेगी, लेकिन डिग्री के दम पर नौकरी लेने वालों की भीड़ में शिक्षा का संदेश छुप गया। नकल आज पूरे प्रदेश में दिन दूना रात चैगुना बढ़ रहा है, फलस्वरूप शिक्षा के व्यापारी बढ़ रहे है। कोचिंग सेंटर खुल रहे हैं, लाखों की संख्या में छात्र 10वी 12वीं की परीक्षा पास करते है, लेकिन बस डिग्री होती है, ज्ञान का कहीं अता पता नही होता है। ज्ञान का एक गहन अंधेरा छाया हुआ है। कौड़ियों के भाव में डिग्रियां बंेची जा रही हैं। आज प्रदेश में शिक्षितों की मात्रा तो बढ़ रही है लेकिन गुणवत्ता उसी तेजी के साथ अपना स्तर खोती जा रही है। काॅलेजों की बाढ़ आ गई है। शिक्षा के पवित्र कार्य का नकल माफिया ने सोने की मुर्गी देने वाला अंडा समझ लिया है। इसके बाद कुशासन की बात आती है, गरीब की सुनी नही जाती है। मायावती के सख्त शासन में भी निघासन जैसी घटना घटती है। 
अखिलेश यादव सुशासन की बात करते हैं और उनकी नाक के नीचे मुख्य चिकित्सा अधिकारी का अपहरण हो जाता है। कुण्डा में एक ईमानदार पुलिस वाले की सरेआम हत्या कर दी जाती है। मुजफ्फरनगर में एक छोटी सी बात को लेकर दंगे भड़क जाते हैं। खनन के कुछ जिम्मेदारों की वजह से एक ईमानदार अफसर को बर्खास्त कर दिया जाता है। प्रेम की नगरी मथुरा में प्रशासन की नाक के नीचे एक अपराधी खुलेआम अपना साम्राज्य खड़ा कर लेता है। फलस्वरूप एक अच्छे पुलिस अधिकारी को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है। एक मंत्री की भैंस चोरी होती है जो 24 घंटों में खोज ली जाती है उसी प्रदेश में रेप के मंत्री पूरे 15 तक पुलिस की पहुंच से दूर रहते हैं। और निजाम बदलते ही आत्मसर्मपण कर देते हैं। प्रशासन के बाद बात आती है सरकारी भर्तियों में भाई भतीजावाद की । किस तरह से पुलिस भर्ती में अधिक से अधिक यादव चयनित हो जाते हैं और हकदार मन मसोस कर रह जाते हैं। इसके अलावा 5 सालों में 30 से ज्यादा प्रदेश स्तरीय सेवाओं की भर्तियां निकाली गई और फिर रद्द की गई।

 इसके अलावा पश्चिमी उत्तरप्रदेश में पलायन एक सशक्त मुद्दा बनकर उभरा है। हजारों की संख्या में परिवार गांव के गांव खाली कर दूसरे प्रदेश या उन जिलों में जाकर बस गए हैं जहां उनके जान माल के सुरक्षा की पूरी व्यवस्था है। बेरोजगारी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है विकास के पथ पर कराहते उत्तरप्रदेश के लिए। वर्तमान शिक्षण गुणवत्ता के मरियल स्वभाव के कारण शिक्षितों का प्रजनन तो अंबौर की तरह हो रहा है लेकिन गुणवत्ता की सशक्त आवश्यकता के बीच संतुलन न बना पाने के कारण वे फल देने से पहले ही सूख जाते हैं और फिर कचरे के काम में आ जाते हैं। इनके अलावा दो मुद्दे ऐसे भी हैं जिनका फायदा बीजेपी हमेशा से उठाती रही है। लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश से प्रचण्ड बहुमत और फिर विधानसभा में भी उसी का सीक्वल अब उन मुद्दो पर कदम बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार है । एक तो राम मंदिर निर्माण का मुद्दा है जिसका जिक्र बीजेपी ने इस बार तो नही किया लेकिन योगी के मुख्यमंत्री बनने व बहुमत से सरकार बनने के बाद यह सिर उठा रहा है। और यूपी ही नही पूरे देश से इसके पक्ष में बयान आ रहे हैं। खैर यह तो अदालत में अभी लंबित है लेकिन सरकार से उम्मीद की जा रही है।

 दूसरा बुंदेलखण्ड सहित पूरे प्रदेश में पड़ने वाले सूखे और कहीं कहीं तबाही मचाने वाली बाढ़ से निपटने की ठोस योजना बनाना। बुंदेलखण्ड लगभग हर पार्टी के सियासी एजेंडे पर रहता है। लेकिन लोभ में लिपटी पार्टियां इसे अचार समझ रही हैं। उन्हे लगता है कि बंुदेलखण्ड आम का अचार है कि जितना पुराना होगा उतना ही स्वाद बढ़ता जायेगा। लेकिन वे यह भूल रही हैं कि अचार भी एक समय के बाद सड़ने लगता है। बुंदेलखण्ड को नया जीवन प्रदान करना न सिर्फ योगी के आगे का भविष्य तय करेगा बल्कि मोदी की विकासवादी राजनीति को एक नया आयाम देगा। इसके अलावा साम्प्रदायिक ताकतांे को दबाना भी नई सरकार के मुख्य मुद्दों में शामिल होना चाहिए। जिस तरह से बात बात पर दंगे भड़क जाते हैं। प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात हो, शासन-प्रशासन का मामला हो, या विकास के लिए जरूरी योजनाओं की बात हो। हर एक मामले को सम्प्रदाय से जोड़ दिया जाता है, फिर उससे राजनीतिक उपयोग तलाशे जाते हैं। जीत के जश्न में डूबे हिंदुत्व प्रेमियों के उल्लास, उत्साह को नियंत्रण में रखना भी एक गंभीर मुद्दा है।

 चुनौतियां

खैर हर एक नेक व स्वच्छ काम में विघ्न बहुत होते हैं। कुछ पहले से मौजूद होते हैं, कुछ समय के साथ सामने निकल कर आते हैं। जिस तरह से अखिलेश यादव सरकार व समाजवादी पार्टी संगठन के साथ हुआ। ठीक उसी तरह से कुछ चुनौतियां नवनियुक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने भी आयेंगी। योगी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी अपने बेबाक बोल व स्वयं की राय को नियंत्रित करना। उन्हे अब यह समझना होगा कि एक सामान्य जनप्रतिनिधि का सफर तय कर वे अब एक संवैधानिक पद की गरिमा बढ़ाने जा रहे हैं। 

अब तक धर्म, सम्प्रदाय व हिंदुत्व को लेकर जिस तरह से उनके बेबाक व बेखौफ बयान आते रहे हैं उस पर अब लगान लगाना पड़ेगा। इसके बाद पार्टी के विभिन्न काडर के नेताओं के साथ तालमेल बिठाकर सरकार चलाना एक कठिन चुनौती होगी। पिछले 20 सालों से सूखी पड़ी बीजेपी में अब जब बाढ़ आयी है तो हर एक बूथ लेवल के कार्यकर्ता से लेकर बड़े ओहदे के नेता के मन मे अब अपने आप को ढंग से सींच लेने की ख्वाहिश होगी जो लाजिमी है। फलस्वरूप भ्रष्टाचार व दबंगई बढ़ने की आशंका से इंकार नही किया जा सकता, उस पर लगाम लगाना प्रदेश व पार्टी ही नही मोदी व योगी के निकट भविष्य के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगा। योगी को यह ध्यान रखना होगा कि अब वे एक संसदीय क्षेत्र नही बल्कि पूरे प्रदेश का नेतृत्व करते हैं। 

हलांकि एक मुख्यमंत्री के साथ दो उपमुख्यमंत्री भी हैं जिसमें अपने नेतृत्व से प्रदेश का सियासी समीकरण साधने वाले केशव प्रसाद मौर्य व बेदाग छवि वाले लखनऊ के मेयर दिनेश शर्मा शामिल हैं। तो ऐसा लगता है कि चुनौतियों से निपटने में योगी को आसानी होगी। इसके अलावा प्रदेश के छात्रों में कुछ ख्वाहिशें जगी हैं जिनमें लैपटाॅप, स्माार्टफोन जैसे खिलौने नही बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में मजबूत पहल करना शामिल है। उसे भी पूरा करने में योगी को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा अखिलेश यादव के पांच साल के शासन में कुप्रबंधन की शिकार व निष्क्रिय पड़ी नौकरशाही को फिर से सुगठित तरीके से सक्रिय करना व सुशासन का माॅडल अपनाना भी योगी के लिए आसान नही होगा। हलांकि योगी भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह से कड़क फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं। इसलिए इन मुद्दों और चुनौतियों से निपटने में कोई बहुत मुश्किल तो नही होगी लेकिन फिर भी 10 सालों विद्यमान जिन समस्याओं को लेकर विधानसभा चुनाव 2017 लड़ा गया। उन को पूरी तरह न सही तो कम से कम साधारण तरीके से निस्तारण करना मोदी और योगी के लिए जरूरी होगा।
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