भटकाव में युवा क्या करेगा क्रांति ?
भटकाव में युवा क्या करेगा क्रांति ?

युवा किसी भी देश का आज और कल होते हैं। ये किसी भी देश के विकास की र्वे इंट होते हैं, जिन पर किसी भी देश का आधार स्तंभ टिका होता है। नव निर्माण करने की क्षमता युवाओं में होती है। युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य कहते है - युवा तन से नही मन से होना चाहिए। आज भारत जैसे विकासशील देश में युवाओं की आबादी पूरी जनसंख्या का लगभग 41 प्रतिशत है। जिनकी आयु 20 से 30 वर्ष के बीच है। युवा किसी भी देश की रीढ़ होते है। कहते हैं कि युवाओं का जोश और बुजुर्गों का होश साथ चले तो विकास की एक नई क्रंाति आ जायेगी। आज हम विकासशील देशों की श्रेणी में काफी तेजी से बढ़ रहे है। लेकिन आज का युवा किस ओर जा रहा है। यह चिंतन योग्य सवाल व विचार है। आज के युवा के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजगार की उत्पन्न हो रही है। वल्र्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2013 के अनुसार भारत में लगभग 15 से 24 वर्ष के 9 प्रतिशत पुरूष व 11 प्रतिशत महिला बेरोजगारी में अपना निर्वाह कर रहे हैं। बेरोजगारी आज ब्लैक होल की तरह से दिन प्रतिदिन अपना मुंह फैला रही है। सोंचने योग्य बात यह है कि यह सारा का सारा किस्सा किसी एक व्यक्ति की देन नही है, बल्कि यह हमारे कम समय में ज्यादा पा जाने की वजह से उत्पन्न हुई है। आज युवापीढ़ी मेहनत से कमाने खाने के बजाए शार्टकट मारकर जल्दी से बहुत कुछ पा लेने के बारे में सोंचता है।
भारत में आज भी लगभग 60 प्रतिशत हिस्से पर कृषि कार्य किया जाता है। कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ है फिर भी हम बेरोजगारी की हालात में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। युवा अगर वैज्ञानिक तौर तरीके से कृषि कार्य करें तो 90 प्रतिशत तक समस्यायें हल की जा सकती है। लेकिन आज युवा समस्याओं को सुलझाने के बजाय खुद समस्या बनता जा रहा है। बात बात पर आंदोलन, धरना, प्रदर्शन करना व तोड़ फोड़ कर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना आज के युवा का शगल बन चुका है। जिन युवाओं केे दम पर भारत कभी जगद्गुरु हुआ करता था, उसी भारतवर्ष के राष्ट्रीय, सामाजिक, पारिवारिक एवं व्यक्तिगत जीवन में चातुर्दिक अराजकता एवं असमयता का वातावरण छाया हुआ है। जीवन मूल्यों एवं आदर्शों के प्रति आस्था-निष्ठा का भाव आज युवा के मन से लगभग गायब हो चुका है। वैचारिक शून्यता और दुष्प्रवृत्तियों के चक्रव्यूह में फंसा हुआ दिशाहीन युवा पतन की राह पर फिसलता जा रहा है।
बाह्य रूप से चारों ओर भौतिक एवं आर्थिक प्रगति दिखाई देती है, सुख-सुविधा के अनेकानेक साधनों का अंबार लगता जा रहा है, दिन-प्रतिदिन प्रतिभावान युवाओं के द्वारा किए जाने वाले कार्य व आविष्कार हमें देखने को मिलते हैं, लेकिन उससे ज्यादा हमें युवाओं के अन्दर की आत्मिक अवनति व बिखराव की बातंे सुनने को मिलती है। उसका समाज के प्रति सद्भाव और जीवन के प्रति उल्लास धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। आज युवा को साथ लेकर चलने वाले तो बहुत सारे दिख रहे है, लेकिन उसे संभालने व उचित मार्गदर्शन देने वालों का अभाव लगातार दिखाई दे रहा है। आदर्शहीन समाज से उसे उपयुक्त मार्गदर्शन नही मिलता और दिशाहीन शिक्षा पद्धति उसे और अधिक भ्रमित करती रहती है। ऐसे दिग्भ्रमित और वैचारिक शून्यता से ग्रस्त युवाओं पर पाश्चात्य अपसंस्कृति का आक्रमण कितनी सरलता से होता है। विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थान जो युवाओं की निर्माणस्थली हुआ करते थे, आज अराजकता, राजनीतिक उठापटक व सियासी सरगर्मियों के केन्द्र बन गए हैं। राजनीतिज्ञों के दुष्चक्र ने तो युवाओं को और अधिक उलझा दिया है। शिक्षाकेंद्र पूरी तरह से राजनैतिक द्वन्द का अखाड़ा बन गये हैं। इस युद्ध में युवावर्ग का प्रयोग कच्चे माल के रूप में खुलेआम होता है।


21वीं सदी भारत के लिए युवाओं की सदी हैं, शायद हमारी युवा ताकत का ही नतीजा है कि विश्व की महाशक्तियां आज हमारे भरोसे पर रहती है। दुनिया के प्रसिद्ध तकनीकि संस्थानों पर आज भारतीय युवाओं का कब्जा है। लेकिन आने वाली युवा पीढ़ी के जिस तरह से लक्षण दिखाई दे रहे हैं वे एक भयावह तस्वीर सामने ला रहे है। क्या हम नशे में जकड़े हुए, उन्मादी, पथभ्रमित, अनैतिक युवाओं को साथ लेकर एक विकसित भारत की कल्पना कर सकते हैं ? यह हमारे सामने आज के समय का एक विचारणीय व ज्वलंत प्रश्न है।