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योगीराज: अफवाह, मुद्दे और चुनौतियां

योगीराज: अफवाह, मुद्दे और चुनौतियां

 लाखों की भीड़, बार बार योगी का उद्घोष, मोदी की जय जयकार, गरीबों की गुहार, कुछ न्याय के प्यासे, कुछ अन्याय से लड़ने वाले। 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव पूरी तरह से लोकसभा चुनाव लग रहा था। हर तरफ बस भाजपा और मोदी की बात चल थी। चुनाव हुए और नतीजे भी आये। नतीजों ने एक बार फिर से लोस चुनाव की याद दिलाई साथ ही एक संदेश भी दिया कि जाति, भाई भतीजावाद, धर्म की राजनीति करने वाली पार्टियों के साथ अब यूपी की जनता खड़ी नही है। एक स्पष्ट जनादेश मिल चुका था। साथ ही उन राजनीतिक पंडितों के लिए एक चेतावनी भी जो एअर कंडीशन कमरों में बैठकर यूपी में त्रिकोणीय मुकबले की बात कर रहे थे, और भाजपा बसपा के गठबंधन की बात कर रहे थे। 403 विधानसभा सीटों में से 312 सीटें जीतना कोई आसान काम नही होता लेकिन मोदी नाम की सुनामी ने वह करतब कर दिखाया जो कभी आम चुनावों के दौरान राजीव गांधी ने किया था। चूंकि यह 11 मार्च को ही तय हो गया था कि सरकार भाजपा की ही बनेगी। लेकिन जिस तरह से भाजपा ने बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ चुनाव लड़ा और स्पष्ट बहुमत हासिल किया उससे मोदी विरोधियों के मुंह एक बार फिर से बंद हो गए। स्पष्ट जनादेश मिलने के बाद यह कयास लगाये जाने लगे कि आखिर बुनियादी विकास के पथ से भटके हुए यूपी को क्या कोई ऐसा शासक मिलेगा जो कि उसे फिर से कच्ची सड़क से उठाकर हाइवे न सही तो कंक्रीट की सड़क पर तो खड़ा ही कर दे।
 इसमें शुरूआत से ही गोरखपुर के सांसद, व भाजपा के फायरब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ का नाम आगे आया
लेकिन एक दो दिन के बाद मामला शांत हो गया। रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा व केशव प्रसाद मौर्य के बीच लड़ाई जारी रही। और ठीक जिस तरह कहते हैं कि गरजने वाले बादल कभी बरसते नही हैं वही हुआ दोनों को मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर बैठा दिया गया। और एक छुपे रुस्तम की तरह से अंतिम समय पर योगी आदित्यनाथ ने एंट्री मारी और चुनौतियों व विकट समस्याओं से घिरे जंगल के सिंघासन पर आसीन हो गए। वैसे चुनौतियों से निपटने का उनका रिकाॅर्ड पुराना है। और उन्हे इसमें मजा भी आता है। खैर जैसे ही शनिवार को दोपहर 12 बजे योगी को विशेष विमान से दिल्ली बुलाया गया, चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। और शाम को 6 बजते भारत के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी ताजपोशी तय कर दी गयी। और फिर इसके साथ ही पूरे प्रदेश की राजनीति व जनमत में एक उत्साह उमंग व उतावलेपन की झलक दिखाई पड़ने लगी।
 अब जब देश के सबसे बड़े प्रदेश की राजनीति में इस तरह से परिवर्तन आया तो देश के मुख्यधारा की मीडिया में भी परिवर्तन आया। इसके बाद लगातार योगी के विभिन्न चैनलों के साथ हुए पुराने इंटरव्यू और बयानों की फुटेज सामने आने लगी, जिनमें वे बेबाक और निडर होकर अपनी बात रख रहे हैं। 

अफवाहें

अब यूपी में अफवाहों का दौर शुरू हो चुका है, सबसे ज्यादा तो अफवाह वर्ग विशेष को लेकर है कि योगी एक वर्ग विशेष को पसंद नही करते हैं लेकिन हकीकत यह है वे देश के खिलाफ बोलने वाले को पसंद नही करते। दूसरी अफवाह है कि अब यूपी फिर से भड़क उठेगा फलस्वरूप दंगे होंगे। लेकिन देखने वाली बात यह है कि 1998 से जिस गोरखपुर से वे सांसद हैं वहां अब तक दंगा नही भड़का है। इसके साथ यह भी अफवाह है कि वे धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देंगे लेकिन योगी बेधड़क कहते हैं कि वे धर्म परिवर्तन नही करा रहे बल्कि जो भटक गए हैं उनकी घर वापसी करा रहे हैं। पूर्वांचल के कद्दावर व हिंदुत्व के लिए लड़ाई लड़ने वाले अग्रिम पंक्ति के नेता हैं योगी। 
कुछ लोगों को लगता है कि योगी की वजह से अब हिंदुत्व के विकास पर ज्यादा ध्यान दिया जायेगा लेकिनसांेचने योग्य बात है कि सनातन धर्म के विकास के लिए क्या कभी किसी व्यक्ति विशेष की जरूरत पड़ी है? और रही बात विकास की तो जब सड़क बनती है, बिजली आती है, नहरें बनती है, मेट्रो चलती है, परिवहन व्यवस्था सुधरती है, या फिर शासन प्रशासन में सुधार आता है तो वह वर्ग विशेष को देखकर नही आता बल्कि वह समाजवाद के नियम का पालन करते हुए सबके साथ व विकास की बात करते हुए आता है। बात करते हैं अगर मुद्दों की तो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री व पालने में खेलने वाले बालक की संज्ञा पाये अखिलेश यादव व प्रदेश की बहन मायावती समस्याओं का अंबार अपने पीछे छोड़कर सत्ता से बेदखल हुए हैं। भाजपा ने इस तरह 35 सालों के बाद यूपी में जबरदस्त वापसी की है तो जाहिर सी बात है कि जनता की सरकार से अपेक्षाएं अधिक है, सरकार के पास बस पांच साल हैं, और विकास के मुद्दे ब्लैक होल की तरह से मुंह बाये खड़े हैं। क्रमशः
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