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तुलसी की परमगति

तुलसी की परमगति

गुनगुनी धूप न सह सकी मेरे आंगन की तुलसी
चैत्र के पहले हफ्ते में ही बेबस होकर झुलस गई।


मैं लाख मिन्नतें करता रह गया इन बादलों से
कुछ बूंद गिरा दो अपने आँचल से अमृत की।।
ताकि बच सके हमारी संवेदनाओं में लिपटी।
वो जो मौजूद है आंगन के कोने में सिमटी
बेवक्त मेरे आंखों से कुछ बूंदें छलक गई।
अफसोस वे तुलसी के काम न आ सकी।।

हर रोज जल अर्पित कर प्रार्थना की जाती थी
घर परिवार को संरक्षित और सुरक्षित रखने की।
हां कुछ दिनों से षड़यंत्र रचे जा रहे थे
आंगन से निकाल उसे द्वारे पर ले जाने की

क्या आभास होने लगा था उसे अपनी दुर्गति का
किस तरह से उसके कोमल तनों को काटा जाएगा
इससे पहले उसकी कोमलता को नष्ट किया जाता
शायद ईश्वर ने सुन ली थी उसके अंतर्मन की पुकार
चिंता यही है सबको कि अब जल किसको चढ़ाएंगे
किससे करेंगे परिवार में सबकी सलामती की दुआ

लेकिन धन्यवाद देना होगा सूर्य की इन किरणों को
जिन्होंने आंगन के कोने में सिमटी तुलसी को
दुर्गति से पहले परमगति में पहुंचाकर अमरत्व दिया
उपेक्षा की शिकार तुलसी को परलोक भेजकर।
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