देखना है अगर प्रकृति का उपहार, एक बार घूम के आओ तुंगनाथ के दरबार
यात्राएं इंसानी दिल और दिमाग को स्वस्थ रखती हैं, तब और ज्यादा जबकि महानगरों में रहने के बाद आप पहाड़ों के बीच प्रकति की गोद खेलने की इच्छा बनाते हों। हरिद्वार समेत पूरा उत्तराखंड मेरे जेहन में बस चुका है। पेशे का अनुभव लेने या नौकरी की मजबूरी कहें, पिछले एक साल से एनसीआर में प्रवास हो रहा है। आपकी जेब मे पैसे हो तो एनसीआर आपको बहुत प्यार करेगा। खाना, पीना रहना...सब कुछ टॉप क्लास। लेकिन बात जब प्रकृति के उपहारों से रूबरू होने की आती है तो एनसीआर से प्रेम का तापमान गिरने लगता है।
अप्रैल के खत्म होते महीने और मई की बढ़ती उमस व गर्मी के बीच एनसीआर के हाल बेहाल हो जाते हैं। खासतौर से हम जैसे मिडिल क्लास वालों के तो और, जिनको गर्मी बढ़ने पर एसी की हवा नहीं बल्कि बगीचे में पेड़ की छांव चाहिए होती है। ऐसे में अगर उत्तराखंड की हसीन वादियों में घूमने का प्रस्ताव कहीं से आ जाये तो दिल बल्लियों उछलने लगता है। खासतौर से उत्तराखंड की यात्राओं का रोमांच तब और बढ़ जाता है जब अपनों के साथ किसी तीर्थ के दर्शन करने का प्लान बन जाए।
देव संस्कृति विवि में पढ़ाई के दौरान शैक्षिक गुरु और आध्यात्मिक अभिभावक सुखनन्दन सर के संरक्षण में हरिद्वार से देहरादून की कई यात्राएँ की। लेकिन सर के साथ पहाड़ों की लंबी यात्रा का सपना हमेशा दिल में फड़फड़ाता रहता। कई बार सर की सोशल मीडिया पोस्ट पर कमेंट भी किए। सर हमेशा कहते थे कि जब ईश्वर का मन होगा प्लान बन जायेगा। मई के महीने में ऐसी ही एक यात्रा का प्लान बन गया। मुझे इतना बताया गया कि पहाड़ों पर चल रहे हैं। प्लान चूंकि विवि से जाने का था तो हमने हामी भर दी।
मई माह की 8 तारीख को सब कुछ ठीक था। सूर्य की तपिश ले बावजूद लोग अपना काम कर रहे थे। लेकिन हर कोई एक दबी दहशत में जी रहा था। कारण दो दिन पहले मौसम विभाग द्वारा जारी चेतावनी थी। जिसमे कहा गया था कि आने वाले दो तीन दिन एनसीआर के लिए बेहद संवेदनशील रहने वाले हैं। हर दिन की तरह मैं भी जागरण के ऑफिस पहुँच गया। लेकिन अगले दिन मुझे अपनी यात्रा पर निकलना था, उससे पहले आज रात ही हरिद्वार पहुँच जाना था। शाम को मौसम का मिजाज सही था। लेकिन मेरठ से जब हरिद्वार की तरह रवाना हुआ तो मौसम ने रंग दिखाना शुरू कर दिया।
एक बार मन में आया कि यात्रा रद्द कर वापस मेरठ लौट चलूं लेकिन फिर यात्रा के रोमांच का अनुभव होते ही मौसम का यह रूप फीका लगने लगा। इस बीच विवि में पढ़ रहे भाई बहनों से पता चला कि हम तुंगनाथ जा रहे हैं। फिर तो यात्रा का जोश और रोमांच दुगुना हो गया। देव संस्कृति विवि जिसे मैं अपनी आध्यात्मिक जन्मभूमि मानता हूँ, वहां रात में ही पहुँच गया। एनसीआर की उमस भरी गर्मी से निकलने का अहसास हरिद्वार पहुँचते ही हो गया।
9 मई की सुबह पूज्य गुरुदेव और गायत्री माता का आशीर्वाद लेकर अपने गुरुजनों, सहपाठी और शैक्षणिक रूप से छोटे भाई बहनों के सम्मिलित करीब 25 लोगों का दल एशिया के सबसे ऊंचे शिवलिंग तुंगनाथ के दर्शन करने को निकल पड़ा। चूंकि सहपाठी हिमांशु के साथ कई बार तुंगनाथ की यात्रा का प्लान बना लेकिन किसी न किसी कारण से हम जा नहीं सके। हमारी जिज्ञासा तब और रोमांचक हो गई जब पता चला कि तुंगनाथ का तापमान माईनस डिग्री में चला गया है।
तमाम तरह की जिज्ञासाओं और रोमांच के साथ यात्रा को आगे बढ़ाते हुए हम ऋषिकेश पहुँच गए। हरिद्वार में पढ़ते समय जब हमारा सत्रावसान होता था तो हम ऋषिकेश पहुँच जाते थे। ऋषिकेश हर अवस्था में सुखद अनुभूति और स्मृतियों से भर देता है। जीवन की कई यादें अपने भीतर समेटे हुए है ऋषिकेश। फिर चाहे इसकी गलियों में घूमना हो, सवेरे गंगा स्नान करना हो या फिर शाम को विश्वप्रसिद्ध गंगा आरती देखना। आज भी लग रहा है कि तीन तरफ पहाड़ों से घिरे इस आध्यात्मिक-आधुनिक शहर में शिव साक्षात विराजमान हैं। यह अहसास हो रहा है कि, नील विष कंठ में लिए शिव आज भी दुनिया संजीवनी परोस रहे हैं।
अप्रैल के खत्म होते महीने और मई की बढ़ती उमस व गर्मी के बीच एनसीआर के हाल बेहाल हो जाते हैं। खासतौर से हम जैसे मिडिल क्लास वालों के तो और, जिनको गर्मी बढ़ने पर एसी की हवा नहीं बल्कि बगीचे में पेड़ की छांव चाहिए होती है। ऐसे में अगर उत्तराखंड की हसीन वादियों में घूमने का प्रस्ताव कहीं से आ जाये तो दिल बल्लियों उछलने लगता है। खासतौर से उत्तराखंड की यात्राओं का रोमांच तब और बढ़ जाता है जब अपनों के साथ किसी तीर्थ के दर्शन करने का प्लान बन जाए।
देव संस्कृति विवि में पढ़ाई के दौरान शैक्षिक गुरु और आध्यात्मिक अभिभावक सुखनन्दन सर के संरक्षण में हरिद्वार से देहरादून की कई यात्राएँ की। लेकिन सर के साथ पहाड़ों की लंबी यात्रा का सपना हमेशा दिल में फड़फड़ाता रहता। कई बार सर की सोशल मीडिया पोस्ट पर कमेंट भी किए। सर हमेशा कहते थे कि जब ईश्वर का मन होगा प्लान बन जायेगा। मई के महीने में ऐसी ही एक यात्रा का प्लान बन गया। मुझे इतना बताया गया कि पहाड़ों पर चल रहे हैं। प्लान चूंकि विवि से जाने का था तो हमने हामी भर दी।
मई माह की 8 तारीख को सब कुछ ठीक था। सूर्य की तपिश ले बावजूद लोग अपना काम कर रहे थे। लेकिन हर कोई एक दबी दहशत में जी रहा था। कारण दो दिन पहले मौसम विभाग द्वारा जारी चेतावनी थी। जिसमे कहा गया था कि आने वाले दो तीन दिन एनसीआर के लिए बेहद संवेदनशील रहने वाले हैं। हर दिन की तरह मैं भी जागरण के ऑफिस पहुँच गया। लेकिन अगले दिन मुझे अपनी यात्रा पर निकलना था, उससे पहले आज रात ही हरिद्वार पहुँच जाना था। शाम को मौसम का मिजाज सही था। लेकिन मेरठ से जब हरिद्वार की तरह रवाना हुआ तो मौसम ने रंग दिखाना शुरू कर दिया।
9 मई की सुबह पूज्य गुरुदेव और गायत्री माता का आशीर्वाद लेकर अपने गुरुजनों, सहपाठी और शैक्षणिक रूप से छोटे भाई बहनों के सम्मिलित करीब 25 लोगों का दल एशिया के सबसे ऊंचे शिवलिंग तुंगनाथ के दर्शन करने को निकल पड़ा। चूंकि सहपाठी हिमांशु के साथ कई बार तुंगनाथ की यात्रा का प्लान बना लेकिन किसी न किसी कारण से हम जा नहीं सके। हमारी जिज्ञासा तब और रोमांचक हो गई जब पता चला कि तुंगनाथ का तापमान माईनस डिग्री में चला गया है।
तमाम तरह की जिज्ञासाओं और रोमांच के साथ यात्रा को आगे बढ़ाते हुए हम ऋषिकेश पहुँच गए। हरिद्वार में पढ़ते समय जब हमारा सत्रावसान होता था तो हम ऋषिकेश पहुँच जाते थे। ऋषिकेश हर अवस्था में सुखद अनुभूति और स्मृतियों से भर देता है। जीवन की कई यादें अपने भीतर समेटे हुए है ऋषिकेश। फिर चाहे इसकी गलियों में घूमना हो, सवेरे गंगा स्नान करना हो या फिर शाम को विश्वप्रसिद्ध गंगा आरती देखना। आज भी लग रहा है कि तीन तरफ पहाड़ों से घिरे इस आध्यात्मिक-आधुनिक शहर में शिव साक्षात विराजमान हैं। यह अहसास हो रहा है कि, नील विष कंठ में लिए शिव आज भी दुनिया संजीवनी परोस रहे हैं।