हर हर मोदी घर घर मोदी, कहीं कहीं पर चले न गोटी
भारत में लगभग दस साल से काबिज कांग्रेस सरकार को बदलने और बदलाव लाने की हवा वर्ष 2013 में तभी से दिखने लगी जब कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को देश की मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने अपना पीएम पद का उम्मीदवार चुना और उन्हे लोकसभा चुनाव 2014 की जिम्मेदारी दी। मोदी की इस यात्रा में उनका साथ पूरी मजबूती से पूरे देश ने दिया और 26 मई 2016 को मोदी देश के प्रधानमंत्री पद पर सत्तासीन हुए। मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही देश में लंबे समय से बदलाव की मांग को हवा मिली और देश विकास के पथ पर तीव्र गति से अग्रसर हो उठा। लोगों को लगा कि अब उनके दिन फिर से बहुरेंगे। कुछ फैसले भी लिए गए। लोगों के बीच अपनी हनक बनायी भारत के इस डिजिटल प्रधानमंत्री ने लेकिन दिन प्रतिदिन जैसे समय बीतता जा रहा है मोदी की भारत में लोकप्रियता क्षीण होती जा रही है। और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है दिल्ली और बिहार के विधान सभा चुनाओं में मिली करारी हार। लेकिन इसके बावजूद मोदी अब लक्ष्य 2024 का सपना पूरी बीजेपी को दिखा रहे हैं। और अपनी नीतियों के साथ आगे बढ़ रहे हैं। आइये एक नजर डालते हैं उनकी कार्यशैली, योजनाओं पर।
गांवों के पुनरोद्धार की नयी राह

भारत की 63800 ग्राम सभाएं अभी भी वहीं पर खड़ी हैं। ग्राम विकास से संबंधित दर्जनों योजनाएं चल रही हैं। अरबों की धनराशि खर्च की जा रही है। केन्द्र अपनी योजना लांच कर रहा है राज्य अपनी, पर स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नही आया है। मौजूदा बजट में ग्रामीण विकास के लिए 87765 करोड़ रूपये मंजूर किए गए। मनरेगा के बावजूद ग्रामीण शहर में बेरोजगार घूमते पाए जाते हैं। शिक्षित युवा डिग्री के साथ लाइन में खड़े हैं। पीने का शुद्ध पानी नही। नाली खड़ंजा शिक्षा की हालत बद से बदतर स्थिति में है। कहीं बिजली नही तो कहीं खंभा। कृषि से बस जीवन यापन किसी तरह हो रहा है। इस स्थिति में जब मोदी सरकार आयी तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मतिथि के दिन सांसद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा की। सभी सांसदों से अपने संसदीय क्षेत्र के कम से कम तीन गांव गोद लेकर उन्हे आदर्श ग्राम बनाने की अपेक्षा की। यह 2019 तक पूरी करनी है। इसमें अच्छे स्कूल, रहने के लिए आवास, पीने का शुद्ध पानी, सड़कें, दवाई घर, आदि काम शामिल किए गए। लेकिन अनेक राज्य सरकारों द्वारा सहयोग न करने और सभी विभागों में जरूरी तालमेल न होने के कारण अपेक्षित परिणाम नही आए। अनेक सांसदों ने गांव भी नही चुने।
तेजी से राह पकड़ते कूटनीतिक फैसले

प्रधानमंत्री बनने के साथ ही भारत की विश्व पर एक अमिट छाप देखने को मिली। भारत को अब फिर से विश्वगुरू का दर्जा देने का एक विराट प्रयास शुरू हुआ। नरेंद्र मोदी एक संतुलनकारी ताकत के रूप में भारत की भूमिका को नेतृत्वकारी ताकत में बदल देना चाहते हैं। वे मानवा है कि ऐसा देश जहां मानवता का छठा हिस्सा निवास करता है और जो जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा उसे उसका सही मुकाम हासिल हो। भारत का शीर्ष नेतृत्व अब यह समझ गया है कि अमेरिका अब अवसान की ओर है जबकि चीन लड़खड़ा रहा है, ऐसे में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते भारत के पास दुनिया का नेतृत्व करने का अच्छा मौका है। और इसी दर्जे की तलाश का एक हिस्सा है यूएनएससी की स्थायी सदस्यता जिसके लिए सरकार ने हर संभव प्रयास किए। पड़ोसी देशों को सहायता देना हो या फिर उनके साथ रिश्ते निभाना हो। उन्हे भारत के खिलाफ चलाए जाने वाले कार्यक्रमों की निंदा कर फटकार लगाना हो या फिर कूटनीतिक सफलताएं हर जगह अपना परचम भारत लहरा चुका है। चाहे नेपाल में आए प्राकृतिक भूकंप की घटना हो, पाकिस्तान की सहायता, म्यांमार के भीतर पूर्वोत्तर के बागियों की तलाश हो, मोदी सबसे पहले प्रतिक्रिया देने को तैयार रहते हैं।
काम करने के तरीकों में बुनियादी बदलाव

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत में कार्य करने की नीति में बुनियादी बदलाव आया है। मोदी तैयार हुए संदेशों के हिसाब से नही चलते बल्कि संदेशों को अपने हिसाब से चलाते हैं। काम करने की नीति पहले की तरह से नही रह गयी है बल्कि उसमें ज्यादा आत्मविश्वास आया है, एक संकल्प दिख रहा है इसकी सबसे बड़ी वजह मोदी का खुद चैबीस में से लगभग अठारह घंटे कार्य करना रहा है। उनका मंत्रिमंडल भी सशक्त है। हर महीने की 25 तारीख को वह पूरे देश में चल रही परियोजनाओं की चर्चा, विचार, विमर्श, अनुदान आदि के बारे में अपने सचिवों के साथ रिपोर्ट लेते हैं और आ रही समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करते हैं। इस के लिए प्रगति नाम से एक विशेष कार्यक्रम भी बनाया गया है। इसकी सराहना देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव आलोक रंजन खुद कर चुके हैं।
कई सारी महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरूआत।

देश के युवाओं को देश में रोजगार दिलाने और देश के भविष्य को देश में ही रोककर प्रगति में भागीदारी देने के लिहाज से मोदी ने डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी, मेक इन इंडिया, मुद्रा बैंक, रोजगार गारंटी योजना, नमामि गंगे योजना, खेलो इंडिया, राष्टीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, नेशनल इंडस्टियल काॅरीडोर आदि योजनाओं की शुरूआत की। इसके अलावा उनके द्वारा गांवों में निवास करने वाली करोड़ों गरीब महिलाओं को चूल्हा फूंकने से मुक्ति दिलाने के लिए 1 मई 2016 को भारत के 24 राज्यों के 533 जिलों में शुरू की गयी उज्जवला योजना एलपीजी कनेक्शन योजना भी काफी सकारात्मक परिणाम लेकर आयी है। इसके अलावा हर परिवार को बैंक से जोड़ने के लिए शुरू की गयी जनधन योजना भी सरकार के लिए लाभकारी सिद्ध हुई। इसके अलावा स्वच्छता अभियान को भी अपार सफलता मिली।
स्वच्छ छवि के पुरोधा
मोदी अपनी लोकप्रियता को भुनाने के माहिर हैं। खुद को प्रेरणादायी व्यक्तित्वों से जोड़ना पसंद करते हैं और ऐसे सरल किंतु मौन विचारों को बाजार में फेंकना पसंद करते हैं जिन्हे लोकप्रियता मिलने का भरोसा होता है। उनकी नीतिया भले ही उधार की हों पर उनका संवाद कौशल गजब का है। पुराने पकवान को नए बर्तन में परोसकर खिलाना उन्हे अच्छे से आता है। 70 के पार हो चुके नेताओं को मुख्यधारा से हटाने का काम करके युवा नेतृत्व की नयी परिभाषा दी है।
कुछ मुद्दों पर मौन धारण

मोदी कितनी भी कोशिश कर लें पर वे अभी सर्वमान्य नेता के तौर पर स्थापित नही हो पाए हैं। लव जेहाद, धर्मांतरण, दलित उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर निरंतर बोलने वाले राजनेता मोदी की चुप्पी चिंता पैदा करने वाली है। इसके कारण अल्पसंख्यकों के साथ विश्वास की खाई और चैड़ी हो जाती है। वे अभ तक को बड़ा आर्थिक या संस्थागत सुधार नही कर पाए हैं। उत्पादन क्षमता में नई जान नही आ पायी है। संसद में चल रहे गतिरोध को रोकने में अभी वे नकाम रहे हैं। केन्द्र राज्य जैसे अहम मुद्दे का समाधान अभी भी बाकी है। संघ के साथ मोदी के संबंध अभी भी स्पष्ट नही हैं।
इस तरह से देखा जाए तो जब उम्मीदें इस कदर बुलंद हो जाएं कि आसमान छूने लगें और फिर पूरी न हों तो आलोचकों को चुप नही कराया जा सकता। जनता का गुस्सा सारे बांध तोड़ सकता है। जनता का गुस्सा अब सड़कों से ज्यादा मतपत्रों पर दिखता है। अब भारतीय मतदाता आपने हानि लाभ और अधिकार के प्रति काफी सजग होने और जागरूक होने लगे है।