कमजोर नींव पर कभी इमारत नही बनती
15 अगस्त 1947 की रात्रि जब अंग्रेजों ने भारत को छोड़कर जाने का फैसला किया, तो उन्होने भारत को दो भागों मे बांटने पर जोर दिया। दरअसल बंटवारा दो देशों का नही बल्कि दो सम्प्रदायोें हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र बनाने का था। चूंकि जिन्ना की विचार धारा द्विराष्ट्रवादी थी जबकि नेहरू समग्र राष्ट्र निर्माण की नीति पर विश्वास करते थे।
जिन्ना का मानना था कि हिंदू मुसलमान एक साथ नही रह सकते और इसी का नतीजा हुआ कि बिना व्यवहारिक अध्ययन किए अंग्रेजों ने भारत पाक का बंटवारा बंद कमरे में भौगोलिक तरीके से नक्शे पर किया जो कि अव्यवहारिक था। फलस्वरूप 1947 से एक ऐसा खेल शुरू हुआ जिसकी सजा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से दोनों देश के नागरिक पा रहे हैं। बंटवारे के बाद भारत ने विश्व में मौजूद गुटों से अलग रहकर गुटनिरपेक्ष की नीति पर बल दिया जबकि पाकिस्तान शुरू से ही अमेरिका के प्रभाव में चला गया।
हलांकि आजादी के बाद से ही दोनों देशों में लोकतांत्रिक सरकारों की नींव रखी गयी। पर अमेरिका ने सरकार से ज्यादा सहयोग पाकिस्तानी सेना को दिया। और परिणामस्वरूप आतंक की पौध उगना शुरू हो गयी। लेकिन इससे पहले ही पाकिस्तान छीन कर खाओ की रणनीति अपना चुका था जिसका सीधा उदाहरण तब मिला जब जिन्ना ने कूटनीतिक तरीके से स्वायत्त होने की मांग कर रहे बलूचिस्तान को पाकिस्तान में मिला लिया। और अब उसकी निगाह जमी कश्मीर पर और भारत के पर्यटन के मुख्य अंग कश्मीर पर उसने 1965 में कबायली हमला करवाया। और फिर सीधे पाक सेना युद्ध पर उतर आयी। परिणाम स्वरूप पाक युद्ध हार गया।
लेकिन अब भारत से उसने बदला सीधे तौर पर लेने के बजाए रणनीतिक आधार पर लेना शुरू किया और कश्मीर में अलगाववाद को हवा देना शुरू किया। और भारत के अंदर ही आतंक की फसल रोपनी शुरू की। लेकिन ज्यादा सफलता नही मिलने पर सीमा पार से आतंकी हमले करवाने में सहायता करने लगा। चूंकि भारत की स्थापना सर्वधर्म समभाव, शांति और सहिष्णुता को लेकर की गई थी, इसलिए उसने पड़ोसी से वार्ता कर सुलह करनी चाही लेकिन पाक ने कभी भी दिलचस्पी नही ली और लगातार अलगाववाद व आतंकियों को हवा देता रहा। जिसका नतीजा अभी भी वहा मौजूद हाफिज सईद व मसूद अजहर जैसे आतंकी हैं।
अब बात यहां आकर अटकती है कि जो राष्ट्र दूसरों की सहायता पर टिका हुआ है, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर यह साबित हो चुका है कि वह एक गरीब व अविकसित देश है। तो आखिर आतंक को सहारा देने वाले हथियार और अस्त्र शस्त्र कहां से आ रहे हैं। आतंकियों के पास धन कहां से आ रहा है कि वे आत्याधुनिक हथियार खरीद रहे हैं। 19 सितम्बर को हुए उरी हमले के बाद जब भारत में सिंधु जल समझौता को लेकर बदलाव या समीक्षा की आवाज उठने लगी तो उसी समय आज तक की पत्रकार श्वेता सिंह शिकागो पाक के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुसर्रफ का साक्षात्कार लेने पहुंच गई। बहुत सारी बातें हुई मुसर्रफ हर हाल में पाक का बचाव करते रहे व लागातार नवाज शरीफ पर उंगलियां उठाते रहे। लेकिन उनके साक्षात्कार से एक बात जो सामने निकल कर आयी वह यह रही कि मुसर्रफ की हालत खिशियानी बिल्ली खंबा नोचे वाली है।'



